इतना ज्यादा पैसा है इनके पास कि तय नहीं कर पा रहे इसे खर्च कैसे, कहां करें ! हालांकि यही पूंजीपति लोग आम गरीब, गरीब, मजदूर, किसान, बेरोजगार, मध्य वर्ग को विभिन्न बहानों से लूट रहे हैं


नई दिल्ली। संसार में दर्जनों लोग ऐसे हैं जिनकी प्रति मिनट की कमाई करोड़ों रुपये है। इनमें से बहुतों को खर्च करने का कोई बहाना नहीं मिलता। दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति और ऑनलाइन मार्केटप्लेस ऐमजॉन के संस्थापक जेफ बेजॉस कई बार अपनी समस्या सार्वजनिक कर चुके हैं। दरअसल, वह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इतने पैसे का क्या करें? एक साल से कुछ और पहले उन्होंने ट्विटर पर अपने फॉलोअर्स से पूछा था कि वह किस तरह के परोपकार पर पैसे खर्च करें? और अब पिछले सप्ताह जेफ बेजॉस और उनकी पत्नी मेकेंजी ने दान करने की शुरुआती योजना का ऐलान किया। 
 उन्होंने कहा कि वे बेघरों को बसाने और स्कूल से पहले की शिक्षा में सुधार लाने के लिए एक नया फाउंडेशन बेजॉस डे वन फंड बनाकर 2 अरब डॉलर (करीब 140 अरब रुपये) दान करेंगे। यह रकम बेजॉस की कुल संपत्ति का बहुत ही छोटा हिस्सा है। फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक उनकी संपत्ति अभी 162 अरब डॉलर है। हालांकि, नए फाउंडेशन का नाम बताता है कि अभी कई और ऐलान होने बाकी हैं। अप्रैल में बेजॉस ने एक इंटरव्यू में कहा था, श्मेरी नजर में इतने बड़े वित्तीय संसाधन के वितरण का एक ही तरीका है और वह यह है कि कि मैं अपने ऐमजॉन की कमाई को अंतरिक्ष यात्रा में लगा दूं।श् 
बेजॉस अपनी अकूत संपत्ति को कैसे और कहां खर्च करें? यह सवाल तो वाकई बहुत बड़ा है, लेकिन ये सवाल भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं कि आखिर उनके पास इतना पैसा क्यों आया? उनकी इतनी बड़ी संपत्ति हमें आर्थिक ढांचे और उन्हें खरबपति बनानेवाली टेक इंडस्ट्री के प्रभाव के बारे में क्या कहती है? और, सबसे बड़ा सवाल कि इतनी बड़ी संपत्ति के लिहाज से उनके दायित्व क्या हैं और वह इन पैसों का क्या करेंगे, क्या इससे हमारा कोई लेनादेना है? इसका जवाब है- हां, इससे हमारा लेनादेना है। 
 बेजॉस की अकूत संपत्ति सिर्फ उनके कौशल की देन नहीं है। इसके पीछे वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार दे रही कुछ बड़ी ताकतें भी हैं। इनमें एक है- डिजिटल टेक्नॉलजी का असमान असर जिसने कई लोगों के लिए लागत घटाई और आसानी बढ़ा दी। लेकिन, ऐसा उन्हीं के साथ हुआ जिनका प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ मुट्ठीभर सुपरस्टार कंपनियों और उनके सबसे बड़े शेयरधारकों तक सिमट कर रह गया। पैसे का पहाड़ खड़ा होने के पीछे लेबर और इकनॉमिक पॉलिसी का भी असर है जिसका अमेरिका मे कड़ाई से पालन नहीं हुआ और जिसने टेक आधारित बिजनस से पैदा होनेवाली अकूत संपत्ति की समस्या को बढ़ावा ही दिया। 
 ऐमजॉन का कहना है कि उसके वेयरहाउस में काम करनेवाले श्रमिकों को हर घंटे औसतन 15 डॉलर (करीब 1000 रुपये) मिलते हैं जिनमें वेतन और अन्य मुआवजे शामिल हैं। कंपनी ने यह भी बताया कि वह वर्करों को करियर से जुड़े कौशल के लिए ट्यूशन भी देती है। 15 डॉलर प्रति घंटा वेतन कुछ अन्य रिटेलरों की तुलना में ज्यादा है, लेकिन अमेरिका में एक परिवार को मूलभूत जरूरतें पूरी करने के लिहाज से कम है। 
 अब सवाल उठता है कि बेजॉस इस समस्या को परोपकारिता के जरिए कैसे सुलझांगे? विनर्स टेक ऑल (विजेता सबकुछ हथिया लेते हैं) नाम की अपनी पुस्तक में संपत्ति अर्जित करने के असीमित अवसर पर आपत्ति दर्ज करनेवाले लेखक आनंद गिरिधर दास ने कुछ लचीली आर्थिक नीतियों का सुझाव दिया है। इनमें यूनियनों की मजबूती, शिक्षा के लिए समान भुगतान, न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि और ज्यादा प्रगतिशील टैक्स सिस्टम पर जोर जैसे उपाय शामिल हैं। दुनिया के दूसरे और तीसरे सबसे धनवान शख्स क्रमशः बिल गेट्स और वॉरन बफेट मान चुके हैं कि उन्हें और ज्यादा टैक्स देना चाहिए।


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